Hindi Story (हिंदी स्टोरी official) : "अधूरा ख्वाब" Adhura khawab - प्रेरणादायक कहानी, inspirational Hindi Story
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"अधूरा ख्वाब" - प्रेरणादायक कहानी, inspirational Hindi story.
मोहन नाम हैं मेरा, उम्र 23 साल और काम मुझे क्या करना है अभी भी मै उसी में ही लगा था। सुबह जल्दी सो के उठने में और रात को जल्दी सोने तक का यह सफर मेरा आज भी चल रहा था और कब तक चलेगा यह मुझे नहीं पता। वैसे मुझे लिखने का बहुत शौक था मैं कविता लिखा करता था कुछ भी मौका हो मैं लिखते रहता था 12 साल का था मैं, जब मैंने अपनी पहली कविता लिखी। मेरी कविता का टाइटल "ना करो किसी से बैर" उस दिन हमारे स्कूल के कल्चरल फंक्शन में लोगों ने बहुत पसंद किया और हमारे टीचर्स ने भी मुझे सराहना दी "तुम बहुत अच्छा लिखते हो लिखते रहो" सारे टीचर्स ने ऐसा मुझसे कहा!
धीरे-धीरे देखते देखते 4 साल बीत गए अब मैं 16 साल का हो चुका था मैं और मेरे दोस्त मिलकर उस दिन पूरे शहर में पोस्टर लगा रहे थे मेरे पापा पार्षद चुनाव उम्मीदवार के लिए खड़े हुए थे जिन का प्रचार प्रसार का जिम्मा हम सारे दोस्तों ने उठा लिया। उस दिन सारे पोस्टर चिपकाने के बाद उस पर लिखे स्लोगन जो मैने लिखे थे उसके चर्चे हर मोहल्ले में थे यहां तक की जहां हमारा एरिया नही भी था वह भी हमारे स्लोगन की चर्चा हो रही थी। जब हम हमारे वार्ड में चुनाव के अंतिम रैली पर निकले थे तब वही स्लोगन कार्यकर्ता के हर किसी की जुबां पर था उस दिन खूब नारेबाजी हुई और खूब शोर शराबा भी। इस साल का इलेक्शन हम जितने वाले थे यहां हम जानते थे और महापौर भी हमारे पार्टी के ही वरिष्ठ पार्षद श्री मेहता ही बनने वाले थे।
फिर कुछ दिनों बाद इलेक्शन का रिजल्ट आ गया जैसा सोचा था वैसा ही हुआ हमारे वार्ड के पार्षद मेरे पापा और हमारे शहर के महापौर श्री मेहता ही बने। उस रात जश्न में जितने भी कार्यकर्ता और हमारे वार्ड के जन समर्थक थे सब उस जश्न में शामिल हुए। एक तरफ सारे लोग जीत के जश्न में डूबे हुए थे और मैं अपनी कहानी में खोया हुआ था। वही कहानी जो मैं अपने अंदर ही अंदर बुन रहा था। मुझे 100 कभी तारीख की थी क्योंकि कुछ महीने बाद मुझे स्टेट कल्चरल प्रोग्राम में जाना था। उससे पहले मुझे उस प्रोग्राम के लिए प्रणाम का रजिस्ट्रेशन करवाना था जो कि मैं इलेक्शन के दौरान नहीं कर पाया अगली सुबह मैं रजिस्ट्रेशन करने रजिस्ट्रार ऑफिस पहुंचा मगर वहां जाकर मुझे पता चला की रजिस्ट्रेशन की डेट खत्म हो चुकी है मैंने उस नोटिस बोर्ड पर लिखा देखा तो मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब मैंने वहां कि किसी से पूछा तब मैं एकदम खामोश सा हो गया। मुझे कुछ भी सूझ नहीं रहा था जिसके लिए मैंने इतनी तैयारी की और जिसके लिए मैं तैयार भी था। "क्या मैं उस चीज को कभी हासिल नहीं कर पाऊंगा?" यही विचार मेरे मन में चल रहे थे अंदर ही अंदर मन में भूल को भूल से भी याद करने की कोशिश नहीं कर रहा था लेकिन वहां भूल भी याद बनकर बार बार मेरे आंखों के सामने ही छा रही थी। रात को सोने के बाद भी नींद में भी मुझे यह बात सताए जा रही थी।
कभी-कभी कुछ रास्ते में हम जाना नहीं चाहते मगर जाना पड़ता है और जिस रास्ते पर हम चलना चाहते हैं वहां रास्ता हमसे और दूर होते चले जाता है। सच में मैं उस दिन के बाद से बहुत दिनो तक बहुत निराश था कुछ समय मैं जो ख्वाब मैंने देखा था वह ख्वाब ही बनकर रह गया। वह अधूरा ख्वाब जिसके पूरे होने का संभव असंभव सा लग रहा था। इतनी छोटी सी बात को मैंने अपने दिमाग में इतना बड़ा बना दिया था की मैं अब अपनी कविताओं से धीरे धीरे दूर जा रहा था कलम पकड़कर कागज पर लिखने तक मेरे हाथ कांपते थे। उस वक्त तो मैं अपने आपको संभाल नही पाया लेकिन अब शायद उतना समझ आ चुका था कि निराश होकर कभी निराशा दूर नही होता कभी कभी हमको लोगो से नहीं खुद से लड़ना होता है जब तक हम अपने ही सवाल का जवाब न ढूंढ ले।
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