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Hindi Story (हिंदी स्टोरी official) : झूट के पैर होते है (Jhoot Ke Pair Hote Hai) - ड्रामा कहानी, Comedy Hindi Story.

झूट के पैर होते है (Jhoot Ke Pair Hote Hai) - ड्रामा कहानी, Comedy Hindi Short Story.


किशोर जी का घर किसी मंदिर से कम नही था। खुशियां हो या दुख की घड़ियां वे भगवान की अरधाना में लगे रहने में पीछे नहीं हटते। लेकिन आज सुबह 4 बजे से किशोर जी भगवान की शरण में साथ ही निर्मला देवी उनकी पत्नी और रीमा उनकी बहू…अब आप बोलेंगे बहु का नाम लिया लेकिन बेटे का नही तो हम जानकारी के लिए बता दे की बेटा अब न हाथ जोड़कर प्रार्थना करने के स्विचवेशन में था और न माथा टेक्कर उनके आशीर्वाद लेने में। क्योंकि उनका बेटा सर से लेकर पैर तक बंधे पट्टी और होठ सूंजा कर यू बैठा था की उसको किसी बात का घमंड हो। वैसे वो विल चेयर में बैठा आंखे  बड़ी कर एक अलग ही चिंतित और अपने बाप से घबराया हुआ था।





पूजा खत्म होने के बाद किशोर जी ने अपने बेटे के ऊपर पहले तो गंगा जल छिड़क कर उसे बाहरी नकरात्मक ऊर्जा से शुद्ध किया  और फिर उसे एक मन ही मन कोई फाड़ू सा कॉम्प्लिकेतट मंत्र पढकर पवित्र धागे देकर उसे बुरी शक्तियों से मुक्त किया।


फिर सारे लोग उसके इर्द गिर्द बैठ कर अब उसकी ओर नजरे गड़ाए और अपनी अपनी कान सीधी कर उसके ऐसे होने का कारण जानने उसके जुबानी धीरे धीरे सुनने लगे।

जैसे जैसे रमेश ने अपनी दुर्घटना को एक एक तथाकथित क्रमशः सुनाने लगा। इस घटना क्रम को सुन उसकी मां के आंखों से आसू धार और उसकी पत्नी की आंखों का दर्द साफ साफ दिखने लगा था और किशोर जी भी अब कहानी के साथ ऐसे जुड़ चुके थे की उन्होंने तुरंत भगवान जी को शष्टांग प्रणाम किए और फिर उन सबसे कहा यह एक बुरा फेरा था जो की बिना ज्यादा कुछ हुए पार हो गया। किशोर जी की इस वाणी को सुन निर्मला देवी भी तुरंत रो पड़ी और बोली ही भगवान ऐसा दूसरा फेरा फिर मत देना।


अब ऐसा करते करते सुबह के 7 बज गए बेटा रमेश को आराम करने को कहा गया और बाकी लोग भी रात भर से जागे वे भी सोने चले गए। जब वे उठे तो दोपेहर के 1 बज चुके थे। उनके घर और दुकान को बंद देख आसपास पड़ोसी दोस्त यार रिश्तेदार सबके फोन आने लग गए, कुछ तो घर आ पहुंचे। सबको हमारे प्यारे भोले भाले रमेश को देख दया आने लगी थी। क्योंकि कहानी ही इस प्रकार थी की आप लोग भी शायद रो पड़ेंगे, ऐसा भी हो सकता है। चलिए फिर आपको बता ही देते है तो रमेश की घटना की कहानी इस प्रकार है…रमेश अपनी दिवाली की खरीदारी के लिए अपने गांव से 150 किलोमीटर दूर हमारी राजधानी लखनऊ आ पहुंचा। दिवाली का बाजार था भीड़ भी काफी होगी और खरीदारी करते करते सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम हो गई। खरीदारी में इतना व्यस्थ था कि उसने सुबह से बिना कुछ खाए पूरी ईमानदारी से सबसे पहले अपना काम पूरा करना सही समझा। तब इसी बात पर उसके चाचा जी ने पुछा ऐसा क्यों बेटा तो हमारे रमेश ने कहा मैं कर्म पर विश्वास रखता हु और अपने पिताजी के आदर्शो पे चलता हु यह सुन निर्मला जी ने अपने साड़ी के पल्लू से मुंह को ढक अचानक एक कतरा आंसू का उनकी आंखों से बह गया। पिता जी ने गर्व से अपनी छाती चौड़ी कर ली की बेटा सही रास्ते पे है। चाचा जी ने पूछा फिर आगे क्या हुआ। फिर आगे क्या होना था शहर में भिड़ बहुत थी और शरीर में मेरे कमजोरी। किसी तरह मैंने ऑटो लिया और बस स्टैंड के लिए रवाना होने लगा तभी अचानक उस भीड़ भाड़ भरे इलाके के पास मैं चक्कर खा के ऑटो से नीचे गिर पड़ा, फिर किसी तरह उठा ही था की एक बाइक ने मुझे ठोकर मारी और मेरी ऐसे हालत हो गई और मैं बेहोश हो गया।


यह सुन मां तो और रोते रोते कहने लगी की सच में कितना बुरा फेरा था मेरे बेटे पर, जो पार हो गया नही तो आज क्या होता। यह सुन रमेश की पत्नी चक्कर खा के गिर गई और 2 साल का उनका बेटा उनकी मां को देख जोर जोर से रोने लगा। चाचा जी को यह कहानी इतनी दिलचस्प लगी की वे रमेश की पत्नी को आंखो में पानी मारकर होश में लाया गया और उसके बेटे को चुप कराया और फिर आगे कहानी सुनने में फिर से तैयार हो गए की अब आगे क्या हुआ होगा उसके साथ।


तब किशोर जी के आदर्श और संस्कारी बेटे रमेश ने अपनी कहानी पूरी करना सही समझा। तो आगे फिर किसी तरह रमेश को ऑटो वाले ने सारे पैसेंजर को छोड़ रमेश को ही बस स्टेंड पहुंचना सही लगा। ऑटो वाले ने किसी तरह उसे उसके बस कंडक्टर को खोज उसके हवाले किया। घटनाक्रम के मुताबिक फिर कंडक्टर ने रमेश के दोस्त सूरज को फोन लगाया और सूरज ने किशोर जी को इकतालहा किया। कंडक्टर ने उसकी मरहम पट्टी कर फिर उसको दूसरे बस ट्रैवल में इस हालत में ट्रबल कर घर पहुंचने का बंदोबस्त करवा दिया। बस इतनी सी थी यह कहानी मेरी। सच में यह दुर्घटना सुनकर उसके घर वाले तो पहले से ही बहुत दुखी थे और अब चाचा जी के अलावा धीरे धीरे सारे मोहल्ले वाले भी हो गए।

कई लोग आए और कई लोग मुझे मेरी ऐसे हालात को देख सिंपति देकर चले जाते।


मैं यूं ही बैठा हूं मेरे बीते हुए इस भयानक कल के बारे में सोच रहा था ना जाने मेरे साथ ही ऐसा क्यों होना था खैर वैसे मुझे इस बात का इतना भी गम नहीं है शायद कर्मी जो मैंने ऐसा किया था इसलिए भुगतना पड़ा। फिर अचानक मेरी फोन की घंटी बजी जब फोन पर ऋषभ का फोन आया तो मैं थोड़ा घबरा गया और मेरी घंटी बज गई।


करीबन आधे घंटे ऋषभ से बात होने के बाद और उसकी भेजी हुई तस्वीरें देखकर। मुझसे ज्यादा अब उसकी चिंता हो रही थी उसके दोनों हाथ इस तरह छिल गए थे जैसे किसी ने उसके दोनों हाथों को गन्ने की मशीन में डालकर जैसे उसके सारे रस निकाल लिए हो, सच में लेकिन मुझे डर तो इस बात का भी था कि मेरे पापा को यह सब के बारे में पता ना चले और ऋषभ मेरे खातिर वह बहुत दर्द से तड़प रहा था वो भी बिना किसी गलती के।


आप लोग को लग रहा होगा कि आप कहानी में यह ऋषभ कौन है और ऋषभ का इस सब चीज से क्या लेना देना तो मैं बता दूं ऋषभ मेरे ही पड़ोस का रहने वाला था अब वो वह पढ़ाई के वजह से लखनऊ में रहता हैं। यह बात मेरे अलावा मेरे एक दोस्त को पता था। मैं नहीं चाहता था कि यहां पर और भी किसी को पता चले। अगर किसी और को पता चल जाता तो शायद मेरे घर से मुझको बेघर होना पड़ता।


ऋषभ अपने हाथ की मरहम पट्टी कर चुका था नही तो ऋषभ इस ठंडी भरी मौसम में हगते बक्त गाली दे रहा होता। वो तो खाना भी ठीक से नहीं खा पा रहा था मरहम पट्टी करते वक्त अचानक ऋषभ की मम्मी का फोन आया और वह घबरा गया। इसी तरह उसने फोन उठाया और बातें की कुछ देर बात करने के बाद उसकी मम्मी को शायद ऐसा अहसास हो चुका था कि बेटा तकलीफ में है और उसकी मां उसे देखना चाह रही थी उसकी मां ने वीडियो कॉल पर आने को कहा मगर इधर-उधर के बहाने मारकर वह वीडियो कॉल पर आने से इंकार करने लगा। मां तो मां है वो तो जिद पर अड़ी रही और मां के जीत के आगे बेटा क्या करता उसने किसी तरह वीडियो कॉल पर आ गया उसके फटे होंठ को देखकर घबरा गई। फिर पूछने लगी कि यह क्या हो गया उसने यूं ही हो गया कह कर बात टाल दी। मां की चिंता और बढ़ने लगी तो उन्होंने उसे अपने आप को पूरी तरह दिखाने को कहा। जैसे जैसे ऋषभ अपने आप को दिखाने लगा वैसे वैसे मां की चिंता और भी बढ़ने लगी फिर उसकी मां ने हाथ देखने चाही ऋषभ हाथ दिखाने को बिल्कुल तैयार नहीं था। हाथ के उल्टे तलवे दिखाकर मैं ठीक हूं कहकर बात को फिर से टालने लगा। मा ने किसी तरह उसके वे भयानक छिले हुए हाथ देख ही लिया और छिले हुए गन्ने की तरह या हाथ देख मां का दिल एकदम उदास हो गया। ऋषभ ने किसी तरह मां को समझाया बुझाया की वे रमेश और ऋषभ की कहानी किसी से जिक्र कभी न करे और पापा से भी यह सब के बारे में बात करने को मना किया। मा ने भी उसको समझा-बुझाकर फोन रख दिया।


अगले दिन पता नहीं कैसे ऋषभ के पड़ोस की एक महिला को पता चल गया और फिर वह पड़ोसी  आंटी ऋषभ के घर आ पहुंची। ऋषभ की पड़ोसी आंटी ने ऋषभ की मम्मी को ऋषभ और रमेश के बारे में बताया कि वह दोनों कानपुर में सिग्नल के पास 70 की स्पीड से बुरी तरह फिसलते हुए बाइक से गिर गए और उनकी ऐसी हालत हुई।

"यहां सब आपको कैसे पता।" ऋषभ की मां ने पूछा।


वैसे वहां पड़ोसी आंटी और कोई नहीं सूरज की माता शायद सूरज के फोन पर बात करते वक्त उसकी मां ने यहां सुन लिया होगा। अब मुश्किले थोड़ी और बढ़ गई थी अब महिलाओं को पता चल रहा था डर इस बात का था की कहीं रमेश के पिताजी तक या खबर ना पहुंच जाए। ऋषभ को को उतना प्रोब्लम नही होगा लेकिन अगर रमेश के पापा को इस बात की सच्चाई का पता चल गया तो रमेश सच में घर से बेघर हो ही जाएगा। 


इधर रमेश घर पर खिचड़ी खाते हुए साथ में उसके पापा किशोर जी बेटे के खिदमद में… अब रमेश अपनी कहानी जो उसको देखने आते उन हर किसी को सुना रहा होता कि वह किस तरह ऑटो से गिरा और बस कंडक्टर ने उसकी मदद कर उसे अपने घर तक पहुंचाया और कहा की एक भयानक फेरा था जो मेरे सर से खत्म हो गया।


सारे लोग इस कहानी के इमोशन से ऐसे जुड़े कि सब लोग तहे दिल से अपनी अपनी संवेदनाएं रमेश को देने लगे और उसके पापा यह सब सुन सुनकर और भी दुखी होते रहे। अब तो रमेश के घर, लोगो का आने जाने का सिलसिला सा बन गया। जो भी आता पहले तो उसे चाय और बिस्कुट मिलता और वे लोग चाय बिस्कुट खाते पीते वो सब इस कहानी के इमोशन में डूब ही जाते।


मगर रमेश को पता ही नही था की अब उसकी इस झूठी कहानी की सच्चाई उसके ही आस पड़ोस के लगभग आधे लोगो को पता चल ही चुका था और अब कुछ ही घर बचा था उसके इस बात को पता चलने में। खैर अब तक इनमे से वैसा कोई था नही जो उसके घर तक यह खबर पहुंचाएगा बस ये लोग एक दूसरे को यह बात बताने के बाद बस यही कहते की किसी को बताना मत। धीरे धीरे आस पड़ोस की महिलाए अपने अपने खास को बताते गए और यह भी कहते गए की किसी को बताना मत।


आखिरकार एक दिन यह बात मालूम तो होनी ही थी तो रमेश की वाइफ के कानो तक यह बात पहुंच ही गई..वैसे जिस सूत्र ने रीमा को यह बात बताई उसने भी अंततः यही कहा किसी को बताना मत! बस अपने पति को समझना की वे दुबारा किसी से झूठ न बोलें क्योंकि झूठ कभी छुपता थोड़ी ना है। वैसे यह बात बताने का था तो नही मगर रीमा ने अपनी सांस को दिल पर पत्थर रख कर बता ही दिया यह सुन उसकी मां को बहुत दुख हुआ।

तकलीफ तो होनी ही थी इतनी बड़ी बात उसने छुपाया और उसने हमसे झूठ कहा। जब भी उसकी मां रमेश को देखती बस मन ही मन दुखी होती और चिंतित भी की कम से कम उसे कुछ हुआ नहीं। सुबह से शाम और रात को सोते वक्त उसे यह बात सताती रही उनके मन में दुख और भी बढ़ता गया। किशोर जी निर्मला जी के बगल में बैठ सत्यवाणी नाम की किताब पड़ रहे थे और निर्मला जी के मन में यह खयाल ऐसे उमड़ रहा था की मन से बात कब उनके जुबां पे चढ़ गया और सारी बाते रमेश के पिताजी किशोर जी ने सुन लिया। अब क्या था निर्मला जी को यह बात बताना नहीं थी मगर अब तो उन्होनें बता दिया था फिर क्या किशोर जी की आंखों में एक गुस्सा और दिल में अपने बेटे के इतने बड़े झूठ और इस तरह पाप करते हुए उसका ऐसा हाल हो जाना उन्हें बिलकुल भी रास नही आया। हमारे घर में आज तक किसी ने शराब तक को छुआ नहीं कभी और रमेश  नशे में धुत हाथ पैर मुंह तुड़वाकर बिस्तर पर पड़ा था।


किशोर जी गुस्से में अपनी पत्नी को अपने लाडले के मासूमियत को देखते हुए कहा उसका फेरा था जो खत्म हो गया यही सबको बताते फिर रहा है शर्म नही है बिलकुल उसको।

उसका फेरा खत्म नहीं हुआ निर्मला अब तो उसका फेरा शुरू हुआ है। निर्मला जी ने किशोर जी के पैर पड़ लिए फिर निर्मला जी के बहुत रिक्वेस्ट करने के और कई मिन्नतों के बाद जाकर उन्होंने अपने गुस्से को को को शांत किया और निर्मला जी ने कान पकड़कर रमेश के तरफ से माफी मांग किशोर जी से रिक्वेस्ट कर बस इतना ही कहा की प्लीज रमेश को यह बात मत बताना।

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