Hindi Story (हिंदी स्टोरी official) : "शादी सम्मेलन" हिंदी ड्रामा कहानियां, "Shadi sammelan" Hindi drama short kahaniyan.
Hindi official kahaniyan
"शादी सम्मेलन" हिंदी ड्रामा कहानियां,
"Shadi sammelan" Hindi drama short kahaniyan.
दिसंबर का महीना था, ठंडी बहुत कड़क थी, और इसी वक्त मेरे चाचा की शादी हो रही थी। शादी की तैयारी में घर के सारे लोग जुटे हुए थे।दादा- दादी पापा- मम्मी, मजले चाचा- मझली चाची, मझले दादा जी छोटे दादा जी उनके बेटे सब सब लोग लगे हुए थे। फिर क्या इसी बीच कुछ पड़ोसी भी आते हैं, मदद करने लेकिन हमारे कुछ एक ऐसे पड़ोसी थे। जो अपनी मदद हमसे करवाते हैं, जी हां मेरे दादाजी के मुंह बोली बहन उसका बेटा उसकी बेटी तीनों बहुत ही अजीब गरीब थे।
बारात निकलने का समय हो गया था। आरती का थाली लेकर दूल्हे को शुभकामनाएं दे रहे थे, और इधर बैंड बाजा जोर-जोर से बजये जा रहे थे, और इधर वही पड़ोसी जो मेरे दादाजी के मुंह बोली बहन का बेटा ये क्या कह रहा था कि उसको भी दूल्हे के जैसे आरती करनी है, आरती कर रही मेरी मम्मी और मेरे चाचा जिनकी आज शादी थी वे दोनों ही थोड़ी देर के लिए हैरान हो गए और आसपास के लोग तो वह सब हंसने लगे।
उस पागल को वहां से हटाया गया। उसका नाम वैसे "रामू" था! वो तो पागल ही था। आपने कभी यूजीन को देखा है या यूजीन के बारे मे सुना है, जो डब्ल्यू डब्ल्यू ई में आता था, बहुत पहले सन 2002- 2005 तक टेलीविजन पर टेलीकास्ट होता था, जब रेसलिंग करने वो रिंग में आता था, तो पागलों की तरह अपने आप को मारता और अपने बाल नोचने लगता था। पागलों की तरह दांत से अपने होंठ को काटने लगता था, रामू भी उसी की तरह सेम टू सेम हरकत किया करता, इसलिए तो हम उसको प्यार से यूजिंन बोलते है।
बारात अब दुल्हन के घर पहुंच चुकी थी। वहां पर भी आरती हुई लड़की वालों ने दूल्हे को मंडप पे ले जाया गया। फिर पंडित कुछ सामग्री की तैयारी कर रहे थे और सब घर वाले सारी महिलाएं चाचा के पास बैठे थे। छोटे बच्चे और बाकी सब बड़े बुजुर्ग अपनी अपनी जगह पर स्थित थे। हमारे प्रिय बमन काका थे। जो उस पागल को संभाल कर रख रहे थे। दूल्हे से ज्यादा मुझे फिकर थी कि वह पागल फिर से कोई ऐसी हरकत ना करें, क्योंकि मेरे चाचा की शादी में कोई बवाल ना कर बैठे।
दुल्हन आई मंडप पर साथ में उनकी सहेलीया भी आई और उसी वक्त जितने भी दूल्हे के हम उम्र वाले दोस्त, भाई, कजिन सब अपना अपना काम छोड़कर, कोई अभी रसगुल्ला मुंह में डाल ही रहा था। तो फिर कोई अपना पहला पेग पीने वाला था। सब छोड़ छाड़ के दूल्हे के पास आ गए। अब रस्म शुरू हो रहा था। दूल्हा दुल्हन के ऊपर कपड़ा उठाया जाकर पंडित जी दोनों से कुछ शायद प्राइवेट में कुछ कह रहे थे। कुछ चेतावनी होगी जैसे लोग कुछ सामान खरीदने से पहले देते हैं। कोई बात नहीं है, ऐसे अच्छे माहौल में दूल्हा-दुल्हन अपनी जगह दुल्हन की सहेलियां दूल्हे के फ्रेंड सब अपने माहौल में लड़के वाले संबंधी और लड़की वाले संबंधी सब एक दूसरे के तरफ नजर टिकाए हुए थे तभी!
तभी तो पागल ना जाने कहीं घर के अंदर से एक छोटा टॉर्च को लेकर दौड़ के दूल्हा दुल्हन ओढ़े हुए उस शॉल के अंदर घुसा और ये क्या वह तो टॉर्च दिखा रहा था, अब वहां खड़ा मैं क्या बोलता फिर मैंने गुस्से में थोड़ा मजाकिया अंदाज में कहा "सर्कस में भर्ती क्यों नहीं हो जाता"। बगल में खड़ी उसकी मम्मी ने सुन लिया। उसकी मम्मी भी बड़ी सुभान अल्लाह थी। क्या बोलती है, की मेरा बेटा पागल नहीं है, बस थोड़ा सा दिमाग खराब है। बचपन में सर के बल जो गिर गया था तब से लेकर आब तक वो रोहित मेहता को फॉलो करता है।
अब वहां खड़े सारे लोग, और खासकर दूल्हा दुल्हन तो बहुत ज्यादा शॉक और बहुत ज्यादा गुस्सा आया। दूल्हा ऐसी हरकत बर्दाश्त नहीं कर सकता था। लेकिन क्या करता, दूल्हे के पापा की मुंह बोली बहन जो ठहरी, और उसका बेटा यूजीन। चाचा ने जोर से चिल्लाया फिर बमन को बुलाया और बोला- "आपकी जिम्मेदारी है आप इसको लेकर घर जाओ उसको बांध के रखो कुछ भी करो" और बोलता है- "दुबारा यह मेरे आसपास दिखाई नहीं देना चाहिए, नहीं तो मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा, समझो मेरी शादी है आज"।
"क्योंकि कौन कमबख्त बर्दाश्त करने के लिए शादी करता है, हम तो शादी कर रहे थे कि मैं दुल्हन अपना बनाकर घर ले जा सके, उनसे प्यार कर सके, घर बसा सके और एक ए पागल जो मेरा पूरा काम बिगाड़ने में तुला है"।
शादी के अगले दिन सबकी हालत खराब थी। सबको अपना काम करना है, कल के रिसेप्शन के लिए, बस अब कल की सेरेमनी निकल जाए। फिर आराम मिले मुझे, और हां आज मैं बहुत खुश भी था। क्योंकि मेरी बहुत पुरानी दोस्त जिसको मै पसंद भी करता था।
क्या पता वो मुझे पसंद करती है कि नहीं वैसे वह भी तो हर चीज मुझे बताती थी। अब देखते हैं, अब सभी घरवाले कुछ खेल शुरू कर दिए पहला टेस्ट था दूल्हा-दुल्हन को एक बड़े दूध के पतीले में से अपनी अपनी अंगूठी ही निकालनी है और इसमें मुझे मजा भी आ रहा तो शुरू करते हैं।
चाचा चाची अपने एक एक हाथ पतीले में डालते हैं, और खेला को शुरू करते हैं। दोनों उस पतीले में अंगूठी खोजने के बहाने, एक दूसरे को स्पर्श कर रहे होते हैं, समझने की कोशिश कर रहे हैं, और एक दूसरे की आंखों को निहारते हुए । बगल में गाना बज रहा है वही सन् 2002 की शादियों में बजने वाली सुप्रसिद्ध सॉन्ग "हां मैंने भी प्यार किया है" गाना बज रहा था। और इधर मेरे चारों ओर इर्द गिर्द मेरी फैमिली और मेरी दादी तो कमाल है। हां सच में बैठ बैठ के मेरे चाचबका हौसला बढ़ा रही थी तू ही जीतेगा खानदान का हीरो है। ना जाने और क्या क्या महानता के लफ्ज़ सुनने को मिल रहे थे। अच्छा तो लगता ही है यह सब सुनकर और चाचा को अच्छा भी लग रहा था।
फिर आया रिसेप्शन का दिन अब तो तैयारी का दिन था। अब हम सारे भाई! वैसे हम सात भाई थे,और हम सबका अलग ही ड्रेसिंग लुक, हेयर स्टाइल, शूज शर्ट एंड मेरे घर में ऐसा कोई भाई नहीं है, जो ट्रेडिशनल लुक में कभी तैयार हुआ हो।
हिस्ट्री में शायद कभी नहीं होगा कि किसी ने आज तक कुर्ता नहीं पहना, किसी ने आज तक सूट नहीं पहना। अब क्या करें बदलती दुनिया बदलाव ही संसार का नियम है, शाम को 6:00 बजे यह डिस्कस हो रहा था कि रात को कौन-कौन से शराब आने वाली है, और इस काम को कहा और कैसे अंजाम देंगे। सारी प्लानिंग हो गई क्या कैसे और कहां करना है!
करीबन अब तक पार्टी में रौनक दिख रही थी, लोग आ रहे थे। स्टेज में "दूल्हा-दुल्हन" को गिफ्ट दे रहे थे। साथ में फोटो खिंचवा रहे थे, इधर डीजे में गाने में लोग नाच रहे थे। बूढ़े बुजुर्ग बच्चे सब झूम रहे थे, और खाने-पीने का भी सिलसिला जारी था।
सब अच्छा चल रहा था, और जब सब अच्छा चलने लगे तो फिर कुछ बुरा जरूर होता हैं, ये क्या उस यूजीन कि मां ने भी दस्तक दे दिया,और फिर क्या शगुन के 101 रू दिए और वे खुद भी 500 का शगुन लेकर गई। दादाजी की मुंह बोली बहन है ना इसीलिए। वैसे यूजीन भी आया हुआ था, वैसे यूजीन आज थोड़ा शांत था, वे शांत ही रहे तो अच्छा है । उसके लिए, मेरे लिए सबके लिए भी।
मैं और मेरे भाई बताए गए अड्डे पर अब पहुंच चुके थे। सारी चीजें आ चुकी थी। बस अब कुछ ही लोग का आना बाकी था। धीरे-धीरे सारे काम हो रहे थे, क्योंकि अभी जाम बन रहा था और मै सुबह से ही बहुत खुश था क्योंकि मेरी बहुत अच्छी दोस्त जो आने वाली थी। मैं अपना इंप्रेशन खराब नहीं करने वाला था। जैसे ही मेरे जुबां से एक ऐसा लब्ज निकला कि "मैं आज दारु नहीं पी पाऊंगा", तो बाकी भाई मेरी इस बात पर शॉक से बोले- "क्या तू दारु नहीं पिएगा, क्यों? थोड़ा इको साउंड कर रहा था मेरे कानों पर खैर फिर मैंने कहा उन सबको बढ़ा एक उदासी चेहरा बनाकर, मैंने कहा कि मैं तो बियर पियूंगा। तब जाके थोड़ा उनका भी में हलका हुआ, फिर सारे भाई बंधु गण अपनी अपनी जाम खत्म करके रिसेप्शन की स्थल पर पहुंच।
अब मै आइसक्रीम कॉर्नर में आइसक्रीम का मजा ले रहा था। फिर मुझे गेट से सुरभि आती हुई नजर आई। मैं उसे देख कर उसकी यादों में खो गया। आखिर वो दिन आ गया, और हां आज मैंने उस को प्रपोज करने का भी सोचा था, देखते हैं अब क्या होता है आगे?
मैंने उसके लिए सरप्राइस प्लान भी करके रखा था, अंगूठी लिया मैंने उसके लिए। मैं अपने छोटे भाई जो भाई से बढ़कर उसको बता रहा था। फिर मुझसे सुरभि ने भेंट किया फिर सुरभि ने अपने मम्मी पापा से मुझे मिलाया।
मैंने झुक के उनसे आशीर्वाद लिया। और तो और सुरभि की मम्मी कुछ ज्यादा ही तारीफ कर रही थी, उसकी मम्मी अपने पति को कह रही थी। हमारे सुरभि के लिए भी ऐसा ही दामाद चाहिए, मुझे सुनकर अच्छा लगा। और फिर उसके पापा थोड़ा हंसे- हां हां इसे ही बना लो क्या फर्क पड़ता है, इधर मैं हैरान हो गया सुरभि चुप हो गई मम्मी जी शांत हो गए। पापा जी वहां से अपनी ड्रिंक वाले काउंटर ड्रिंक लेने चले गए।
वैसे उनका वैसा ही औरा है,सबकी नजरों में तो फिक्र नहीं करना। अब मैंने सुरभि और उसकी मम्मी को अपनी पूरी फैमिली से मिलाया। सबको परिचय कराया। सब एक-दूसरे से बात करने लगे। अच्छे घुलमिल सा गए।
मैंने सुरभि को वह अंगूठी पहनाया और उससे अपनी दिल की बात कह ही डाला, वैसे सुरभि भी मुझको ही चाहती थी।
वैसे सुरभि के घर में फैसला करने के लिए उसके दादाजी ही सक्षम है और उसके दादाजी ठहरे मेरे दादाजी के परम मित्र को यह बात पता चली। परंतु अभी नहीं बाद में अभी तो शादी का समय है। फिर मेरे पापा मेरे मम्मी पूरे फैमिली के साथ हमने साथ में फोटो लिया। सब अपने ख्यालों में खोए हुए थे। एक दूसरे से बातचीत कर रहे थे, अचानक!
अचानक कुछ जोर से चिल्लाने की आवाज आई उधर भीड़ सा हो चुका था, मेरी फैमिली सब लोग उधर जाने लगे। मैं भी गया, मैंने भीड़ को पार करके देखा की, यह क्या फिर से नहीं यार हमारी कहानी में यह पनौती साला फिर से आ गया था।
अब तो हद ही हो गई, मैंने देखा यूजीन जमीन पर लोटपोट कर रहा था। रो रहा था, क्योंकि उसको खीर खानी थी और उसको किसी ने खीर कम दे दी। अब ऐसा भी होता है। इधर मैं अपनी कहानी बना रहा था। उधर वो उसकी कहानी पूरी तरह बिगड़ चुकी था। उसको फिर शांत कराया गया और बड़े से बर्तन में ढेर सारा खीर देकर उसको भी विदा कर दिया गया।
फिर रात के करीबन 2:30 बजे ठंड का मौसम था। आग लगी थी महखाने में, फिर मैंने एक टॉपिक छेड़ा उस यूजीन के बारे में, उसका कुछ करना होगा। अब वह हमारे लिए खतरा बन चुका था और आसपास के लोगों के लिए भी। क्योंकि वह ऐसा हरकत सिर्फ हमारे सामने ही नहीं करता। वह ऐसी हरकत सबके सामने करता था। "वह सच में पागल है" अब हमें मानना पड़ेगा बहुत हो गया।
चाचा को कितनी तकलीफ सहन करना पड़ रहा था, शादी में कितना शर्मिंदा होना पड़ा। शादी के दिन मंडप पर सारे लोगों ने देखा। अब इसे मजाक में नहीं लिया जाएगा। क्योंकि यह मजाक का विषय नहीं है, वह मेंटली डिस्टर्ब है, उसको साइकेट्रिस्ट की जरूरत है, इधर बमन चाचा तो साइकेट्रिस्ट बोल भी तो नहीं पा रहे थे। लेकिन कुछ जरूर होता क्या है, हमें यूजीन को मनो वैज्ञानिक से कंसल्ट कराना होगा। क्योंकि उसने कल ही एक कांड कर दिया। उसे कुत्ते ने काटा था,और वह कुत्ता उसके पड़ोस का था।
जो वह पड़ोसी उसे पसंद नहीं करता था। तो उसने क्या किया उसके पास कुत्ता नहीं था और उसको भी वही चीज करना था। उसके पड़ोसी के साथ तो फिर उसने खुद ही कुत्ता बनकर अपने गले में चैन डालकर गले में कुत्ते का पट्टा बांधकर, जिस कुत्ते ने उसे काटा था उसने उस कुत्ते को और उसके मालिक को दोनों को काटकर चला आया अब बताओ।
फिर मम्मी इधर मेरे शादी की बात करने लगी, वह तो पागल है और पराया है, ए तो अपना है अब इसकी शादी की फिक्र होनी चाहिए। इसके चाचा से कितना ही छोटा है, बस 6 साल चाचा की उम्र निकल गई थी, इसलिए शादी नहीं हो पाई थी सही उम्र यही है, कि इसकी भी शादी हो जाए। सब सोचने लगे फिर भी जान लिया। कि अब पहले इस पागल का खेल खत्म करेंगे। आखिरकार दादाजी ने यूजीन के विषय पर कुछ तो बोला "इसको पागलखाने भेजा जाएगा फिर ही कोई शादी की बात होगी। यह मेरा फैसला है, मेरे दादाजी ने आज पहली बार उन्होंने कोई फैसला ढंग का लिया था। बस इतनी सी थी ये कहानी!
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